प्राचीन परंपरा मोनिया नृत्य आज भी बुंदेलखंड में जारी,लाठियों के साथ गजब नृत्य।

Unique tradition of Moniya dance in Jhansi.

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झांसी

बुंदेलखंड अपने आपमें बहुत से लोकनृत्य और लोकसंगीतों को संजोए हुए है। इन्हीं में से एक है मौनिया नृत्य। यह नृत्य बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाकों में दीपावली के दूसरे दिन मौन परमा को पुरुषों द्वारा किया जाता है। इसे मोनी परमा भी कहा जाता है। यह यहां की सबसे प्राचीन नृत्य है। इसे दीपावली नृत्य भी कहते हैं।इसमें किशोरों द्वारा घेरा बनाकर मोर के पंखों को लेकर बड़े ही मोहक अंदाज में नृत्य किया जाता है।

बुंदेलखंड के ग्रामीण अंचलों के लोगों के मौन होकर मौन परिमा के दिन इस नृत्य को करने से इस नृत्य का नाम मौनिया नृत्य रखा गया। साथ ही, मौन व्रत करने वालों को मौनी बाबा भी कहा जाता है। पिछले कई साल से हर वर्ष दिवाली के अगले दिन झांसी के मऊरानीपुर में रहने वाले मौनिया श्रीपत श्रीवास बताते हैं, “कई साल से मौनिया नृत्य में बुंदेली गीत गाते आ रहा हूँ। पूरे दिन उमंग व उल्लास रहता है। मंदिर पर माथा टेकने के बाद मौनिया टोली के प्रण के अनुसार 11 या 21 गाँवों में घूमकर मौनिया नृत्य करते हैं।

“वे बताते हैं कि प्राचीन मान्यता के अनुसार जब श्रीकृष्ण यमुना नदी के किनारे बैठे हुए थे तब उनकी सारी गायें कहीं चली गईं। अपनी गायों को न पाकर भगवान श्रीकृष्ण दु:खी होकर मौन हो गए। इसके बाद भगवान कृष्ण के सभी ग्वाल दोस्त परेशान होने लगे। जब ग्वालों ने सभी गायों को तलाश लिया और उन्हें लेकर लाये, तब कहीं जाकर कृष्ण ने अपना मौन तोड़ा। इसी आधार पर इस परम्परा की शुरुआत हुई। इसीलिए मान्यता के अनुरूप श्रीकृष्ण के भक्त गाँव-गाँव से मौन व्रत रखकर दीपावली के एक दिन बाद मौन परमा के दिन इस नृत्य को करते हुए 12 गाँवों की परिक्रमा लगाते हैं और मंदिर-मंदिर जाकर भगवान श्रीकृष्णा के दर्शन करते हैं।

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